होशियार मिस्त्री की चालाकी पंचतंत्र की कहानी

 होशियार मिस्त्री की चालाकी -

कहानी शुरू होती है रामपुर के छोटे से गांव से। गांव में एक मिस्त्री रहा करता था। एक दिन वह अपनी पत्नी से बात कर रहा होता है। 


पत्नी - क्या हुआ जी, आज आप बहुत दुखी लग रहे है। 


मिस्त्री -  क्या बताऊ रानी ,में अपने मिस्त्री के काम से दुखी हो चूका हु। मैंने बहुत मेहनत कर के दुसरो के लिए अच्छे और सुन्दर घर बनवाये है। 


परन्तु खुद के लिए कुछ नहीं बना पाया। हम अब भी एक झोपडी में ही रहते है। 


पत्नी - चिंता मत करो जी , एक दिन आप अपना खुद का बांग्ला बनवायेंगे। 

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मिस्त्री - कैसे होगा ये सब, मिस्त्री के काम में हमे दो वक्त की रोटी मिल जाये वही बहुत होती है। 


पत्नी - जी खुद पर भरोसा रखे , सब कुछ होगा चिंता ना करे। 


तभी एक आदमी आता है और खजान मिस्त्री को बुलाता है कहता है खजान तुम्हे जमींदार ने बुलवाया है। 


जमींदार - भाई खजान ,मुझे एक बहुत बड़ा और सुन्दर बंगला बनवाना है। यह रखो अपना एडवांस और जल्दी से मेरा बंगला तैयार कर दो। 


मिस्री पैसे रख लेता है और बंगला बनाना शुरू कर देता। 

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बंगला बनाते समय वह सोचता है। जमींदार ने मुझे ५०००० रूपए दिए है बांग्ला बनवाने के लिए, क्यों न में सस्ती चीज़ो का प्रयोग करु और सस्ते में बंगला बना दू। 


यह बंगला २ से ३ साल तो खड़ा रहेगा। बाकि पैसो को ले कर में यहाँ से दूर चला जाउगा और वहाँ पर खुद का बंगला बनाऊगा। 


मिस्त्री सस्ती चीज़े ला कर बंगला बना देता है। वह बंगले की फिनिशिंग इतनी अछि करता है की जमींदार को लगता है बंगले पे काफी जयदा पैसे लगे है। 


जमींदार - खजान मिस्त्री ,हमारे परिवार ने यह तय किया है।  तुमने हमारे लिए बहुत सारे बंगले बनवाये है। इस लिए यह बंगला तुम्हे इनाम में दिया जाता है। 


मिस्त्री अचम्भे में - जमींदार सहाब,अपने यह मुझे पहले क्यों नहीं  बताया। 


जमींदार - में तुम्हे सरप्राइज देना चाहता था। 


मज़बूरी में खजान मिस्त्री को वह बंगला लेना पड गया। वह अपनी बीवी के साथ वह पर रहने लग गया था। 


वह दिनरात यही सोचता उसने यह कच्चा बंगला क्यों बनाया। 


वह मन ही मन सोचता। अब में क्या करू।  ना तो में अब पड़ोस के गांव में बांग्ला बना सकता हु। न ही इस बंगले में २ साल से ज्यादा रह सकता हु। 


खजान मिस्त्री को मज़बूरी में वहाँ पर रहना पड़ा। जमींदार ने दया दिखा कर ,खजान की बीवी के लिए नई गहने और खजान के लिए नय कपड़े भी बनवाये थे। 


जिंदगी काटते हुए २ साल भी हो गए थे।  वह  दिन भी आ गया था जब बांग्ला गिरने वाला था। 


खजान एक दिन पहले ही अपनी बीवी को ले कर उसके मायके चला गया था। एक दिन बाद वह बांग्ला पूरी तरह से गिर जाता है। 


अगले दिन खजान बंगले के आगे आ कर रोने का नाटक करता है। 


जमींदार के पूछने पे कहता है शायद  उसके भाग में झोपड़ा है। और वह अपनी बीवी को ले कर झोपड़े में वापिस चला जाता है। 


वह वापिस अपना मिस्त्री का काम शुरू कर देता है। 


सीख - हमे अपने काम के साथ कभी भी बेईमानी नहीं करनी चाहिए। अगर मिस्त्री ने अपने काम के साथ बेइमानी नहीं की होती तो वह भी आज बंगले में ऐशो आराम  करता। 

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