शेर और बुढ़िया - Sher or budhiya
शेर और बुढ़िया -
दोस्तों आज में आपको एक नैतिक शिक्षा की कहानी सुनाऊंगा जिसका शीर्षक है शेर और बुढ़िया।
गन्नोर नामक एक गांव के पास के जंगल में शेर रहता था। वह बहुत निडर और निर्दयी था। उसे किसी से डर नहीं लगता था।
उसे केवल एक ही चीज़ से डर लगता है वह था इंसान ,शेर सोचता था अगर वह मानव की भाषा सिख ले तो वह बच सकता है और इंसान पर भी राज कर सकता है।
यह सोच कर वह नरसिम्हा भगवन की पूजा करता है। भगवन उससे खुश हो जाते है। शेर उनसे वर मांगता है।
है प्रभु मुझे ऐसा वर दो जिससे में इंसान की भाषा समझ स्कू और फिर उन पर विजय प्राप्त कर स्कू। भगवन उसे वरदान दे देते है।
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शेर अब अपनी धुन में जंगल में घूमता है ,तभी वह २ शिकारी की बाते सुनता है। शिकारी आपस में कहते है तालाब के किनारे हम जमीन खोद देंगे और उस पर मिटटी डाल देंगे जैसा ही कोई आएगा वह उस में गिर जयगा। और हम उन्हें पककड़ लेंगे।
शेर बोलता है इस गड्ढा में हम नहीं तुम गिरोगे। शेर कुछ जानवरो से गड्ढा खुदवाता है और उस पर घास गिरवा देता है।
कुछ समय बाद शिकारी तालाब के पास आते है। और गड्ढे में गिर जाते है। शेर फिर सभी जानवर को बताता है उससे इंसानो की बात समझने का वरदान मिल गया है।
उसने इंसानो की बात सुनी और उन्हें उनके जाल में फसा दिया। शेर को इस बात का घमंड हो जाता है और वह जंगल से गन्नोर की तरफ आता है।
वहां एक झोपडी में बुढ़िया रहती है वह अपने बच्चे पर गुस्सा हो रही होती है। गुस्से में वह अपने लड़के से कहती है।
कालू आशु हमारा गधा ले गया था अभी तक क्यों नहीं लाया। कल सुबह तक पंडित के घर में मिटटी पोहचानी है ,नहीं तो पंडित हमे झोपडी से निकल देगा।
जल्दी जा गधा ले के आ कालू आशु के पास से , मुझे रात में दिखयी भी नहीं देता।
शेर बुढ़िया की झोपडी के पास आता है। शेर सोचता है इंसान की चालाकी समझता हु।
बुढ़िया बड़बड़ाती रहती है ये कालू आशु अभी तक मेरा गधा नहीं लाया। बुढ़िया बड़बड़ाती है शेर भी आ जाये तो भी न डरती ये जमींदार क्या है।
शेर बूढी की बात सुनता है और सोचता है ये कोनसा मानस है जो मेरे से न डरता।
बूढी शेर को देखती है परन्तु रात में उसे न दिखने की वजह से वह उसे गधा समझती है।
शेर दहाड़ता है। बूढी डायलॉग मरती है अबे पांचू से औकात तेरी गधे की दहाड़ ऐसे रहा है जैसे शेर है तू। और बूढी शेर के बाल नोचती है।
बुढ़िया फिर शेर का कान पककड़ कर ले जाती है। शेर इतना डर जाता है खुद को गधा ही समझने लगता है।
बुढ़िया उसको मरती और पीटते हुआ। उससे मिटटी गिरवती है। मिटटी डालते डालते शेर की पीठ टूट जाती है।
बुढ़िया पंडित से पैसे लेने जाती है। शेर मौका देख कर जंगल भाग आता है। बन्दर उसे पूछता है शेर भाई क्यों भागे जा रहे हो।
शेर कहता है भाई पूछ मत जवान शिकारी तो छोड़ो इंसान की बूढी उनसे भी २ कदम आगे है। मुझे गधा बना के इतना मारा की मेरी कमर तोड़ दी।
आज से में किसी इंसान की बात नहीं सुनने वाला
शिक्षा - अगर शेर ने बुढ़िया की बात नहीं सुनी होती तो बुढ़िया उसकी एक दहाड़ में डर जाती। शेर बुढ़िया की बात सुन कर डर गया था। जो अंदर से डर जाता है वो ऊपर से भी वैसा ही बन जाता है।
दोस्तों आशा है आपको शेर और बुढ़िया की कहानी बहुत ज्यादा पसंद आयी होगी। यह कहानी शिक्षा प्रद कहानी है। हमे इस कहानी से यह सिख मिलती है हमे कभी अंदर से नहीं डरना चाहिए। जो अंदर से डर गया वह आधी लड़ाई वही पर हार गया।
तो हमे डरने की बजाए उस इस्तिथी का सामना करना चाहिए।
1 टिप्पणियाँ
Nice
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